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जीवन संगिनी

ऐ मेरी शरीक ए हयात
आ बीते लम्हें करें याद
वो वक्त़ के जब जवानी थी
शुरू हुई तेरी मेरी कहानी थी
प्यार ही प्यार था और न काम था
तीन बच्चों का तौहफा अंजाम था
कभी जो आपस में ताना तानी हुई
इश्क़ की शुरू फिर नई कहानी हुई
तेरे होंठों का रस मैं पीता रहा
तेरी आंखों से मदहोश होता रहा
रहा ख़ुदा का हम पर हमेशा करम
एक शांत हुआ, दूजा हुआ जो गरम
बच्चों को दी तुने परवरिश बेहतरीन
कोई भी नहीं किसी से कमतरीन
जिंदगी में झेलें है कई उतार चढ़ाव
चेहरे पर रखा सदा मुस्कान का भाव
गयी जब वालिदा मेरी  तुने संभाला
तेरी हाथों की चाय अमृत का प्याला
मेरी मां जो बस्ती में न्यारी थी
पसंद करते सब नर-नारी थी
उसकी ही अदा अब तुझ में आ गयी है
हर एक नाते दारी में मां सी छा गयी है
तुम ही मेरा लिबास है तुम ही मेरा ताज भी
हमसफर, हमनशी, हमनवा और हमराज भी
प्यार बेशुमार है तुमसे, तुम पर है नाज़ भी
तुम मेरा कल हो, तुम ही हो मेरा आज़ भी

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9 Comments

Gunjan Kamal

07-Dec-2022 09:02 AM

बेहतरीन

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Punam verma

01-Dec-2022 08:11 AM

Very nice

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अनीस राही

01-Dec-2022 11:36 AM

Thanks 🙏

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Abhinav ji

01-Dec-2022 07:40 AM

Nice

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अनीस राही

01-Dec-2022 11:35 AM

Shukriya 🙏

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